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मंगलवार, 20 जुलाई 2010

आदमी का नाम वजूद खो रहा है ....

जब मै बच्चा था
गाँव में रहता था
अलगू चाचा , कमलू लुहार
धनिया मौसी ,शांति बुआ
सबको पहचानता था
नाम से भी , चेहरा से भी ॥


आज महानगर की
पाश कालोनी के चौराहे पर
कंक्रीट के जंगल के बीच
खड़ा अकेलापन महसूस कर रहा हू ॥
सडकें वीरान है
लोग इन्टरनेट पर चैटिंग करते होंगे ॥


मैं खोज रहा हू अपना एक मित्र
दूधवाले ने कहा
मैं नाम नहीं
फ़्लैट का नंबर जानता हू
जहा पहुचाना होता है मुझे दूध ॥


दुकानदार ने कहा
मैं भी सिर्फ फ़्लैट नंबर ही जानता हू
नाम से कोई नहीं
पहचानता यहां कोई किसी को ॥


क्या अब
इन्शान के नाम की पहचान
अपना वज़ूद खो रहा है ?

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