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रविवार, 27 जून 2010

मेरी उबड़ -खाबड़ गज़लें .भाग -5

जगह बदलने से , हर चीज का नाम बदल जाता है
उसी तरह , पल - पल अब इंसान बदल जाता है ॥

खेल -खेल में करते है चोरी ,ऊपर से सीनाजोरी
अगर दिल चाहे तो .मन -बेईमान बदल सकता है ॥

मैं आपको क्यों रोकू ,कीजिये अपना गोरख -धंधा
झूठ ,सच में तो नहीं , सच झूठ में बदल सकता है ॥

हवाओं को रोक देंगें ,तुफानो से छीन लेगे अपना हक
लकीरें खीचने वाला भी ,चाहे तो महल बना सकता है ॥

आइऐ एक कदम हम बढ़ाये , एक कदम आप
अगर हम एक रहें ,तो इंसान क्या देश बदल सकता है ॥

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